
बोधगया: सदियों पहले भारत के नालंदा और तक्षशिला विश्वविद्यालयों से जो बौद्ध ग्रंथ चीन ले जाए गए थे, वे अब भारत वापस लाए जा रहे हैं। इस काम को सन्याती इंटरनेशनल फाउंडेशन (SIF) नाम की संस्था कर रही है, जिसका नेतृत्व लिम सियो जिन नाम के मलेशियाई नागरिक कर रहे हैं। उन्होंने रविवार को बोधगया में इसकी घोषणा की और पुराने ज़माने की तरह ताड़ के पत्तों पर लिखे कुछ ग्रंथ भी दिखाए।
ग्रंथों का अनुवाद शुरू, भारतीय भाषाओं में भी होंगे उपलब्ध
लिम सियो जिन ने बताया कि इन ग्रंथों को पहले अंग्रेज़ी में अनुवाद किया जा रहा है, फिर उन्हें हिंदी, तमिल, तेलुगु, मलयालम और मराठी जैसी भाषाओं में भी अनुवादित किया जाएगा। इस अनुवाद प्रक्रिया को आसान बनाने में हैदराबाद के सॉफ्टवेयर इंजीनियर प्रतीक वूष्मल्ला मदद कर रहे हैं।
कैसे गए थे ये ग्रंथ चीन?
करीब 1400 साल पहले, 7वीं शताब्दी में, चीनी यात्री ह्वेनसांग (Xuanzang) भारत आए थे और उन्होंने नालंदा के पुस्तकालयों से 600 से ज़्यादा ग्रंथों को चीन ले जाकर वहां अनुवाद करवाया। इन ग्रंथों में बौद्ध धर्म और गणित से जुड़ी कई अहम बातें थीं। चीन में इनका अनुवाद पूरा होने में 400 साल लगे और अब ये ऑनलाइन उपलब्ध हैं।
सरकार की मदद के बिना ही ग्रंथों की वापसी होगी
लिम सियो जिन ने साफ कहा कि इस काम के लिए सरकार की कोई मदद नहीं ली जाएगी। उन्होंने बताया, “ये ग्रंथ पहले से ही इंटरनेट पर उपलब्ध हैं, हम बस इन्हें अनुवाद करके भारत के विश्वविद्यालयों तक पहुँचाएंगे।”
बोधगया में ध्यान शिविर और समाज सेवा
इस परियोजना की घोषणा 5वें अंतरराष्ट्रीय सुन्या मेगा इवेंट में हुई, जिसमें नेपाल, मलेशिया और भारत के सैकड़ों लोग शामिल हुए। यहाँ लोगों को बुद्ध द्वारा सिखाई गई ‘सुन्या’ ध्यान विधि का अभ्यास कराया गया।
इसके अलावा, गर्भवती महिलाओं और कुपोषित बच्चों को पोषण के लिए स्पिरुलिना दी गई। आयोजकों का दावा है कि इस आयोजन को एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स और इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में सबसे बड़े ध्यान सत्र के रूप में दर्ज किया गया है।
संस्कृति और समाज सेवा का संगम
SIF के संस्थापक राजेश सवेरा ने बताया कि उनका संगठन महिलाओं की मदद, किसानों की भलाई और ज़रूरतमंदों को स्वास्थ्य सुविधाएँ देने में भी काम कर रहा है।
पुरानी परंपराओं को दोबारा ज़िंदा करने की कोशिश
लिम सियो जिन ने यह भी बताया कि ताड़ के पत्तों पर लिखने की पुरानी परंपरा को फिर से शुरू किया जा रहा है। उन्होंने कहा, “यह पूरी तरह से प्राकृतिक तरीका है, जिससे हमारी संस्कृति और ज्ञान को लंबे समय तक संभाल कर रखा जा सकता है।”
इस पहल से न केवल भारत की प्राचीन शिक्षा प्रणाली को फिर से ज़िंदा किया जाएगा, बल्कि बौद्ध ग्रंथों और परंपराओं को भी नई पहचान मिलेगी।





