तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के डीएमके सांसदों पर दिए बयान की निंदा की, इसे राज्य का अपमान बताया।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन और केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के बीच राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) और तीन-भाषा नीति को लेकर विवाद छिड़ गया है।
📢 लोकसभा में तीखी बहस
सोमवार को लोकसभा में तीन-भाषा नीति पर चर्चा के दौरान धर्मेंद्र प्रधान ने डीएमके सांसदों को “अलोकतांत्रिक और असभ्य” कहा, जिससे सदन में भारी हंगामा हुआ।
डीएमके सांसद कनिमोझी करुणानिधि ने प्रधान के बयान पर आपत्ति जताई, जिसके बाद केंद्रीय मंत्री को अपना बयान वापस लेना पड़ा।
🔥 स्टालिन की प्रतिक्रिया
प्रधान के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए स्टालिन ने X (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा:
“धर्मेंद्र प्रधान, जो खुद को राजा समझते हैं और अहंकार में बोलते हैं, उन्हें अपने शब्दों पर ध्यान देना चाहिए। आपने तमिलनाडु के सांसदों को असभ्य कहा, जबकि असल में आपने ही तमिलनाडु के साथ धोखा किया है।“
स्टालिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी सवाल किया कि क्या वे अपने मंत्री के इस बयान का समर्थन करते हैं।
🛑 डीएमके कार्यकर्ताओं का विरोध प्रदर्शन
प्रधान के बयान से नाराज डीएमके कार्यकर्ताओं ने तमिलनाडु में उनके पुतले जलाए और विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने भाजपा सरकार पर तमिलनाडु के योगदान को नजरअंदाज करने और राज्य के लोगों का अपमान करने का आरोप लगाया।
📌 धर्मेंद्र प्रधान ने क्या कहा?
प्रधान ने कहा कि तमिलनाडु सरकार NEP को लागू करने से इनकार कर रही है और छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ कर रही है। उन्होंने कहा,
“PM SHRI योजना छात्रों के लिए है, तमिलनाडु सरकार इसे लागू क्यों नहीं करना चाहती? राज्य की शिक्षा राजनीति से ऊपर होनी चाहिए।”
📜 बीजेपी सांसदों की प्रतिक्रिया
बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे और दिलीप सैकिया ने संसद में संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने की मांग करते हुए कहा कि संस्कृत तमिल से भी पुरानी भाषा है और इसे विश्वविद्यालयों में अनिवार्य किया जाना चाहिए।
इस विवाद ने भाजपा और डीएमके के बीच की खाई को और गहरा कर दिया है। आने वाले तमिलनाडु विधानसभा चुनावों के मद्देनजर, यह मुद्दा और भी राजनीतिक तूल पकड़ सकता है।
(नवभारत न्यूज़ 24×7 की विशेष रिपोर्ट)