निर्देशक ऋषभ सेठ और निर्माता-लेखक आदित्य धर की यह कॉमेडी थ्रिलर फिलहाल नेटफ्लिक्स पर देखी जा सकती है।

नेटफ्लिक्स पर आई ‘धूम धड़ाम’ एक नए जोड़े की कहानी है, जिनकी शादी के बाद की पहली रात रोमांस की जगह भागदौड़ और हंगामे में बीतती है। होटल के शानदार हनीमून सूट में एंट्री मारते हैं कुछ खतरनाक लोग, जो एक ही नाम पूछ रहे हैं—चार्ली। फिर क्या? यह नवविवाहित जोड़ा पूरे शहर में भागता फिरता है, अपराधियों से बचता है और खुद भी नहीं समझ पाता कि उनके साथ हो क्या रहा है।
कहानी में क्या खास है?
मुंबई की बेबाक लड़की कोयल चड्ढा (यामी गौतम) और अहमदाबाद के सीधे-साधे वीर पोद्दार (प्रतीक गांधी) की शादी हुई है। शादी के बाद पहली रात दोनों होटल में आराम करने पहुंचे ही होते हैं कि अचानक कुछ गुंडे आ धमकते हैं और चार्ली के बारे में पूछने लगते हैं। बेचारे वीर को कुछ समझ ही नहीं आता, लेकिन हालात ऐसे बनते हैं कि दोनों को वहां से भागना पड़ता है।
इसके बाद पूरी रात दोनों कभी पुलिस से बचते हैं, कभी गुंडों से, तो कभी खुद की किस्मत से! इस पूरे सफर में जहां वीर को अपनी समझदारी पर शक होने लगता है, वहीं कोयल को लगता है कि क्या उसने सही लड़के से शादी की है?
यामी और प्रतीक की शानदार एक्टिंग
इस फिल्म की जान है यामी गौतम और प्रतीक गांधी की जोड़ी। यामी का किरदार कोयल एक दमदार लड़की है, जो किसी हीरो के भरोसे नहीं बैठती, बल्कि खुद एक्शन में उतरती है। वहीं, प्रतीक गांधी का किरदार वीर सीधा-सादा और नियमों का पक्का इंसान है, जिसे सिग्नल तोड़ने तक में डर लगता है।
इन दोनों के बीच की केमिस्ट्री कमाल की है। जहां यामी बहादुरी से हर मुश्किल का सामना करती है, वहीं प्रतीक की मासूमियत और डर लोगों को हंसने पर मजबूर कर देता है।
कमजोर पड़ती फिल्म की पकड़
शुरुआत में फिल्म मजेदार लगती है, लेकिन कुछ देर बाद यह बस भागदौड़ बनकर रह जाती है। बार-बार एक ही तरह के सीन—भागो, छिपो, फिर से भागो।
फिल्म का सबसे बड़ा सवाल—“चार्ली कौन है?”—इतना दमदार नहीं बन पाता। क्लाइमैक्स तक आते-आते सबकुछ पहले से ही अंदाजा लगने लगता है और सस्पेंस उतना मजेदार नहीं रहता।
बीच में एक सीन आता है, जहां कोयल समाज में महिलाओं की स्थिति पर एक शानदार स्पीच देती है। यह डायलॉग बहुत अच्छा है, लेकिन फिल्म के तेज़ रफ्तार एक्शन के बीच अचानक यह सीन थोड़ा अलग-थलग लगता है।
सपोर्टिंग कास्ट का हाल
एजाज खान विलेन के रोल में ठीक हैं, लेकिन उनका किरदार यादगार नहीं बन पाया। प्रतीक बब्बर की एंट्री इतनी छोटी है कि लोग उसे मिस भी कर सकते हैं। मुकुल चड्ढा पुलिस अफसर के रूप में थोड़ी दिलचस्पी जगाते हैं, लेकिन उनका किरदार खास कहीं पहुंचता नहीं।
और क्लाइमैक्स? बॉलीवुड फिल्मों की तरह फाइनल फाइट एक वेयरहाउस में होती है, जो काफी पुराना आइडिया लगता है। हां, अंत में एक कुत्ता एंट्री मारता है और लगता है कि फिल्म का असली हीरो वही है!
देखें या नहीं?
अगर आपको तेज-तर्रार एक्शन और हल्की-फुल्की कॉमेडी पसंद है, तो ‘धूम धड़ाम’ देख सकते हैं। यामी और प्रतीक की जोड़ी फिल्म को देखने लायक बनाती है, लेकिन कहानी में थोड़ी कसावट होती तो मजा दोगुना हो सकता था।
अगर आप दिमाग लगाकर फिल्म देखने के शौकीन हैं, तो यह फिल्म आपको उतनी प्रभावित नहीं करेगी। लेकिन अगर आप बिना लॉजिक लगाए सिर्फ मजा लेना चाहते हैं, तो यह एक बार देखने के लिए ठीक है।







