अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत में मतदाता जागरूकता बढ़ाने के लिए USAID द्वारा दिए गए 21 मिलियन डॉलर पर सवाल उठाया। उन्होंने भारत के ऊंचे कर और टैरिफ का जिक्र करते हुए इस फंडिंग को लेकर आपत्ति जताई। इस मुद्दे पर बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने जांच की मांग की है, वहीं पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी ने किसी भी तरह की वित्तीय सहायता मिलने से इनकार किया है।

न्यूयॉर्क: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को चुनावी प्रक्रिया में मदद के लिए 21 मिलियन डॉलर (लगभग 175 करोड़ रुपये) की फंडिंग पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि भारत एक समृद्ध देश है और दुनिया के सबसे अधिक कर लगाने वाले देशों में से एक है, फिर अमेरिका को वहां चुनावी सहायता देने की क्या जरूरत है?
ट्रंप का सवाल: भारत को 21 मिलियन डॉलर क्यों?
ट्रंप ने फ्लोरिडा स्थित अपने निवास मार-ए-लागो में कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर करने के दौरान कहा, “हम भारत को 21 मिलियन डॉलर क्यों दे रहे हैं? उनके पास बहुत अधिक धन है। वे दुनिया में सबसे अधिक कर वसूलने वाले देशों में से एक हैं, जिससे हम मुश्किल से वहां व्यापार कर पाते हैं।”
ट्रंप ने यह भी कहा कि उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सम्मान है, लेकिन चुनावी प्रक्रिया के लिए इतनी बड़ी धनराशि देने की जरूरत समझ से परे है। यह विवाद तब सामने आया जब एलन मस्क के नेतृत्व वाले ‘डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी’ (DOGE) ने एक रिपोर्ट में दावा किया कि अमेरिका की एजेंसी USAID ने भारत में मतदाता टर्नआउट बढ़ाने के लिए 21 मिलियन डॉलर की मदद दी।
भारत में राजनीतिक घमासान, BJP-कांग्रेस ने की जांच की मांग
USAID की इस कथित फंडिंग को लेकर भारतीय राजनीति में भूचाल आ गया है। भाजपा सांसद महेश जेठमलानी ने आरोप लगाया कि यह पैसा भारतीय चुनावों में हस्तक्षेप के लिए दिया गया। उन्होंने कहा, “DOGE की रिपोर्ट के अनुसार, USAID ने भारत में ‘वोटर टर्नआउट’ के लिए 21 मिलियन डॉलर आवंटित किए। यह असल में मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए किया गया हो सकता है। 2021 में वीना रेड्डी को USAID के भारतीय मिशन का प्रमुख बनाया गया था और 2024 लोकसभा चुनावों के बाद वह अमेरिका लौट गईं। यह गंभीर मामला है और जांच एजेंसियों को इस पर कार्रवाई करनी चाहिए।”
कांग्रेस पार्टी ने भी इस पर चिंता जताई है और मोदी सरकार से मांग की है कि इस फंडिंग की पारदर्शी जांच हो। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी ने स्पष्ट किया कि चुनाव आयोग का USAID के साथ एक समझौता था, लेकिन इसमें कोई वित्तीय लेन-देन शामिल नहीं था।
चुनावी प्रक्रिया में विदेशी दखल: कितनी गंभीर चिंता?
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में चुनावी प्रक्रिया में विदेशी हस्तक्षेप को लेकर पहले भी सवाल उठते रहे हैं। हालांकि, USAID जैसी संस्थाएं आमतौर पर विकास कार्यों में सहयोग देती हैं, लेकिन अगर वाकई इस फंडिंग का उपयोग चुनावों को प्रभावित करने के लिए किया गया, तो यह देश की संप्रभुता के लिए चिंता का विषय हो सकता है। भारत सरकार को इस मुद्दे पर स्पष्टता लानी होगी और यदि कोई अनियमितता पाई जाती है, तो संबंधित एजेंसियों को ठोस कार्रवाई करनी होगी।







